साधन: श्रवण, मनन, निदिध्यासन द्वारा ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति

 "श्रवणं मननं निदिध्यासनं च, मोक्षसाधनानि द्विजश्रेष्ठानि"

वेदांत सूत्र


ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कोई साधारण बौद्धिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह आत्मा की गहराई में उतरकर स्वयं के सत्य स्वरूप की अनुभूति है। यह अनुभूति अचानक नहीं होती, न ही केवल पुस्तकीय ज्ञान से संभव है। इसके लिए तीन मुख्य साधन बताए गए हैं:

👉 श्रवण (श्रवणम्) — गुरु से ब्रह्मज्ञान का सुनना
👉 मनन (मननम्) — उस ज्ञान पर विचार और तर्क से पुष्टि
👉 निदिध्यासन (निदिध्यासनम्) — उस सत्य में एकाग्र होकर ध्यान करना

इन तीनों को मिलाकर ही जीव ब्रह्म के सत्य स्वरूप को पहचान पाता है।


🌿 1. श्रवण — ब्रह्म का प्रथम बोध

श्रवण का अर्थ केवल सुनना नहीं, बल्कि आस्था और एकाग्रता के साथ गुरु से वेदांत विचारों को आत्मसात करना है।

उपनिषदों में कहा गया है:

“तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्”
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु के पास जाना आवश्यक है।

📌 क्या-क्या सुना जाता है?

  • उपनिषदों के महावाक्य — जैसे "अहं ब्रह्मास्मि", "तत्त्वमसि"

  • ब्रह्म का स्वरूप — "सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म"

  • आत्मा और माया का भेद

  • जीवन, मृत्यु, पुनर्जन्म का अर्थ

🎯 उद्देश्य:

  • साधक को पहली बार यह संकेत मिलता है कि वह शरीर या मन नहीं, बल्कि स्वयं ब्रह्म है।

  • यह सुनना भीतर चेतना को झकझोर देता है और शुद्ध जिज्ञासा उत्पन्न करता है।


🔍 2. मनन — शंका और भ्रमों का निवारण

श्रवण से जो ज्ञान मिला, वह मनन द्वारा पुष्ट होता है। इसमें साधक उस ज्ञान पर बार-बार विचार, तर्क और विश्लेषण करता है, जिससे भ्रांतियाँ और संशय मिट जाएँ।

🌪️ सामान्य भ्रांतियाँ:

  • “मैं शरीर हूँ।”

  • “ब्रह्म कोई अलग सत्ता है।”

  • “ज्ञान तो ठीक है, पर संसार असली लगता है।”

इन सबका निवारण तब होता है जब मनन द्वारा यह स्पष्ट हो जाए कि आत्मा ही ब्रह्म है, और शरीर, मन, जगत सब माया हैं।

🧠 मनन के उदाहरण:

  • “यदि आत्मा नश्वर होती तो स्वप्न व जाग्रत अवस्था में चेतना कैसे स्थिर रहती?”

  • “यदि ब्रह्म मुझसे भिन्न होता, तो मैं उसे कैसे जानता?”

🎯 उद्देश्य:

  • तर्क के माध्यम से आत्मसंदेह का अंत

  • दृढ़ निश्चय: "मैं ही ब्रह्म हूँ, यह कोई कल्पना नहीं, सत्य है।"


🧘 3. निदिध्यासन — अनुभव में उतरना

निदिध्यासन का अर्थ है — उस सत्य को मन में बार-बार जपना, चिंतन करना, और ध्यानपूर्वक अनुभव करना।

यह कोई सामान्य ध्यान नहीं, बल्कि स्वरूपस्मरण है — अपने ब्रह्मस्वरूप को बार-बार याद करना और उसमें स्थिर होना।

📿 निदिध्यासन की विधि:

  • “मैं न शरीर हूँ, न मन, न बुद्धि — मैं शुद्ध चैतन्य हूँ।”

  • “अहम् ब्रह्मास्मि” — इस भावना के साथ बैठना

  • सभी विक्षेपों को छोड़कर आत्मा में लीन हो जाना

🔔 यह ध्यान साधक को:

  • संसार की असत्यता का अनुभव कराता है

  • ‘कर्ता’, ‘भोक्ता’ और ‘भोग्य’ की सीमाओं को मिटाता है

  • शांति, आनंद और निर्भयता का अनुभव कराता है

भगवद गीता (6.25) में कहा गया है:

"शनैः शनैः उपरमेत बुद्ध्या धृतिगृहीतया।"
धीरे-धीरे मन को ब्रह्म में लगाना चाहिए, जिससे उसे दृढ़ता प्राप्त हो।


📊 तीनों साधनों की तुलना:

साधनउद्देश्यप्रक्रियापरिणाम
श्रवणज्ञान प्राप्त करनागुरु से उपनिषदों का सुननाआत्मा-ब्रह्म का बोध
मननशंका निवारणबुद्धि से तर्क और विचारआत्मबोध में दृढ़ता
निदिध्यासनअनुभव प्राप्त करनाध्यान और चिंतनब्रह्म की अनुभूति

🔚 समापन विचार:

श्रवण, मनन और निदिध्यासन — ये तीनों ब्रह्मज्ञान की सीढ़ियाँ हैं।
जिसने केवल सुना है, वह पुस्तकीय ज्ञानी है।
जिसने विचार किया है, वह दार्शनिक है।
परंतु जिसने अनुभव किया है — वही ज्ञानी, मुक्त और ब्रह्मस्वरूप है।

"ज्ञान से विश्वास, विश्वास से अनुभव, अनुभव से मुक्ति।"

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