Nirankari Vichar BrahamGyan Kya Hai - ब्रह्मज्ञान क्या है?

 

📜 परिचय: ब्रह्मज्ञान का अर्थ और महत्त्व

"ब्रह्मविद्यायां सर्वविद्याः प्रतिष्ठिताः।"
उपनिषद्


ब्रह्मज्ञान भारतीय दर्शन का ऐसा परम शिखर है, जहाँ पहुँचकर ज्ञानी को जीवन के समस्त रहस्यों का समाधान प्राप्त होता है। यह केवल एक दार्शनिक या धार्मिक धारणा नहीं, बल्कि आत्मा और ब्रह्म के अद्वैत (अभिन्नता) को अनुभूति के स्तर पर जानने की स्थिति है। उपनिषदों, भगवद गीता, वेदांत, और अनेक संतों की वाणी में यही ज्ञान सर्वोच्च बताया गया है, क्योंकि यही मोक्ष, मुक्ति, या निर्वाण की कुंजी है।


🌺 1. ब्रह्म क्या है?

ब्रह्म’ का अर्थ है:

  • जो बड़ा है,

  • जो अनंत है,

  • जो अविनाशी है,

  • जो सर्वत्र व्याप्त है,

  • और जो सत्-चित्-आनंदस्वरूप है।

ब्रह्म कोई मूर्त रूप या देवी-देवता नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का मूल और शुद्ध चेतना का स्त्रोत है। "सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म" — तैत्तिरीय उपनिषद में ऐसा वर्णन है। अर्थात, ब्रह्म सत्य है, ज्ञानस्वरूप है, और अनंत है।


🔎 2. ब्रह्मज्ञान क्या है?

ब्रह्मज्ञान वह दिव्य अनुभूति है, जिसमें साधक यह जान लेता है कि—

"मैं यह शरीर, मन या बुद्धि नहीं हूँ, बल्कि मैं स्वयं वह ब्रह्म हूँ।"

यह कोई सैद्धांतिक ज्ञान नहीं है, बल्कि सीधी आत्मानुभूति है। जब जीव का आत्मा-बोध जागता है और वह माया के परदे को हटा देता है, तब उसे अपने भीतर ही ब्रह्म दिखाई देता है।

उदाहरण:
जैसे किसी व्यक्ति को सपने में दुःख हो रहा हो, लेकिन जब वह जाग जाता है, तो समझता है कि वह दुःख असत्य था। ठीक वैसे ही, जब ब्रह्मज्ञान होता है, तब संसार की समस्त व्यर्थता और दुःख का भ्रम टूट जाता है।


🕉️ 3. क्यों आवश्यक है ब्रह्मज्ञान?

ब्रह्मज्ञान की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि:

  • यह अविद्या (अज्ञान) को समाप्त करता है।

  • यह जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाता है।

  • यह व्यक्ति को भीतर से शुद्ध, शांत और निर्भय बनाता है।

  • इससे ही सच्चे अर्थों में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:

“ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति”
अर्थात जो ब्रह्मरूप हो गया है, वह प्रसन्नचित रहता है, न किसी बात का शोक करता है और न किसी वस्तु की इच्छा करता है।


🧘 4. ब्रह्मज्ञान और आत्मज्ञान में अंतर नहीं

कुछ लोग ब्रह्म को परम सत्ता और आत्मा को अलग सत्ता समझते हैं, जबकि वेदांत का सिद्धांत स्पष्ट करता है:

"अहम् ब्रह्मास्मि" — मैं ही ब्रह्म हूँ।
"तत्त्वमसि" — तू वही है।

ये महावाक्य बताते हैं कि आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है। आत्मज्ञान जब पूर्ण होता है, तब वह ब्रह्मज्ञान में ही परिणत होता है।

🔔 5. सामान्य ज्ञान और ब्रह्मज्ञान में अंतर

विषयसामान्य ज्ञानब्रह्मज्ञान
स्रोत           अनुभव और तर्क           अनुभूति और आत्मसाक्षात्कार
लक्ष्य           भौतिक लाभ, बुद्धि का विकास           आत्मा का उद्धार, मुक्ति
प्रभाव           सीमित और अस्थायी            अनंत और चिरस्थायी
माध्यम            पुस्तकीय ज्ञान                                        ध्यान, साधना, गुरुकृपा

🌄 6. ब्रह्मज्ञान का प्रभाव जीवन पर

जिस व्यक्ति को ब्रह्मज्ञान हो जाता है:

  • वह राग-द्वेष से ऊपर उठ जाता है।

  • उसमें ममता और अहंकार का अंत हो जाता है।

  • वह शांति, करुणा और आनंद का प्रतीक बन जाता है।

  • उसके लिए संसार और ईश्वर में भेद नहीं रहता

स्वामी रामकृष्ण परमहंस, ज्ञानेश्वर, कबीर, शंकराचार्य, अष्टावक्र — इन सभी संतों ने ब्रह्मज्ञान के माध्यम से न केवल स्वयं को मुक्त किया, बल्कि संसार को भी उस मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।


निष्कर्ष

ब्रह्मज्ञान केवल किसी धर्म विशेष की अवधारणा नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए आत्म-जागृति का द्वार है। यह ज्ञान जीवन को गहराई देता है, उसे उद्देश्य प्रदान करता है और अंतिम मुक्ति तक पहुँचाता है।

ब्रह्म को जानना, वास्तव में स्वयं को जानना है। जब आत्मा अपने स्वरूप को पहचानती है, तो संसार का सारा भ्रम समाप्त हो जाता है। यही है — परम सत्य की प्राप्ति।


Popular posts from this blog

Privacy Policy