Posts

landr 20% off promo code - landr 20% off promotional code

  Get 20% off on landr joining   Join Here -  https://join.landr.com/referral/landr-studio/?utm_campaign=sales_platform_en_intl_1stpromoter&utm_medium=paid_referral&utm_source=landr&fpr=hariom80 https://join.landr.com/referral/landr-studio/?utm_campaign=sales_platform_en_intl_1stpromoter&utm_medium=paid_referral&utm_source=landr&fpr=hariom80 https://join.landr.com/referral/landr-studio/?utm_campaign=sales_platform_en_intl_1stpromoter&utm_medium=paid_referral&utm_source=landr&fpr=hariom80 https://join.landr.com/referral/landr-studio/?utm_campaign=sales_platform_en_intl_1stpromoter&utm_medium=paid_referral&utm_source=landr&fpr=hariom80 LANDR promo code   LANDR discount   LANDR 20% off   LANDR mastering coupon   LANDR voucher   LANDR deal   LANDR sale 2025   LANDR offer   LANDR audio mastering discount   LANDR subscription promo...

अवधूत गीता, गीता‑प्रवचन एवं कर्मयोग में ब्रह्मज्ञान की अभिव्यक्ति

  अवधूत गीता, गीता‑प्रवचन एवं कर्मयोग में ब्रह्मज्ञान की अभिव्यक्ति 1. अवधूत गीता में ब्रह्मज्ञान ‘अवधूत गीता’ एक अद्वैत वेदांत की महानतम रचनाओं में से एक मानी जाती है। इसे ऋषि दत्तात्रेय द्वारा रचित माना गया है। इसमें ब्रह्मज्ञान को अत्यंत सरल, लेकिन गूढ़ भाषा में प्रस्तुत किया गया है। अवधूत गीता यह दर्शाती है कि आत्मा (जीव) और ब्रह्म (परमात्मा) में कोई भेद नहीं है – यह अद्वैत की चरम घोषणा है। इसमें कहा गया है: "न मे बन्धो न मोक्षो मे भ्रान्ति मेव किलात्मनि।" (न मुझे बंधन है, न मोक्ष; यह सब केवल भ्रांति है आत्मा में) अवधूत गीता के अनुसार ब्रह्मज्ञानी वह है जो: द्वैत से परे है, नाम, रूप, धर्म, कर्म से रहित है, जो साक्षी भाव में स्थित है और स्वयं को ‘शुद्ध चेतन’ रूप में अनुभव करता है। अवधूत गीता में बार-बार कहा गया है कि ज्ञान के लिए कोई कर्मकांड आवश्यक नहीं, केवल स्वानुभूति , वैराग्य , और निर्विचार चित्त की आवश्यकता है। 2. श्रीमद्भगवद्गीता में ब्रह्मज्ञान श्रीमद्भगवद्गीता में ब्रह्मज्ञान को स्पष्ट रूप से अध्याय 2 (सांख्य योग), अध्याय 4 (ज्ञान...

साधन: श्रवण, मनन, निदिध्यासन द्वारा ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति

  "श्रवणं मननं निदिध्यासनं च, मोक्षसाधनानि द्विजश्रेष्ठानि" — वेदांत सूत्र ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कोई साधारण बौद्धिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह आत्मा की गहराई में उतरकर स्वयं के सत्य स्वरूप की अनुभूति है। यह अनुभूति अचानक नहीं होती, न ही केवल पुस्तकीय ज्ञान से संभव है। इसके लिए तीन मुख्य साधन बताए गए हैं: 👉 श्रवण (श्रवणम्) — गुरु से ब्रह्मज्ञान का सुनना 👉 मनन (मननम्) — उस ज्ञान पर विचार और तर्क से पुष्टि 👉 निदिध्यासन (निदिध्यासनम्) — उस सत्य में एकाग्र होकर ध्यान करना इन तीनों को मिलाकर ही जीव ब्रह्म के सत्य स्वरूप को पहचान पाता है। 🌿 1. श्रवण — ब्रह्म का प्रथम बोध श्रवण का अर्थ केवल सुनना नहीं, बल्कि आस्था और एकाग्रता के साथ गुरु से वेदांत विचारों को आत्मसात करना है। उपनिषदों में कहा गया है: “तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्” — ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु के पास जाना आवश्यक है। 📌 क्या-क्या सुना जाता है? उपनिषदों के महावाक्य — जैसे "अहं ब्रह्मास्मि", "तत्त्वमसि" ब्रह्म का स्वरूप — "सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्...

श्रुति‑भेद: केन, मुंडक, तैत्तिरीय उपनिषदों में ब्रह्म की व्याख्या

  श्रुति अर्थात् वेद — जिनमें उपनिषद सबसे गूढ़ और रहस्यात्मक ग्रंथ माने जाते हैं। वेदों के ज्ञान-सागर का निचोड़ “उपनिषद” कहलाते हैं, और इन्हीं में ब्रह्म की सबसे सूक्ष्म, रहस्यात्मक एवं तात्त्विक व्याख्या मिलती है। हर उपनिषद ब्रह्म को एक विशिष्ट दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है, और साधक को उस परम सत्य तक पहुँचाने की सीढ़ी बनता है। इस खंड में हम तीन प्रमुख उपनिषदों — केन , मुंडक और तैत्तिरीय — के माध्यम से ब्रह्म की व्याख्या को समझेंगे। 🌟 1. केन उपनिषद में ब्रह्म केन उपनिषद सामवेद का भाग है और यह आत्मा तथा ब्रह्म के अंतर को मिटाकर ब्रह्म की अनुभूति की ओर ले जाता है। इसका मुख्य प्रश्न ही यह है: "केन ईषितं पतति प्रेसितं मनः?" (मन किसके आदेश से कार्य करता है?) 🔎 मुख्य शिक्षा: ब्रह्म इंद्रियों और मन के परे है। यह वाणी से अवर्णनीय और बुद्धि से अगम्य है। इसे न तो आँख देख सकती है, न कान सुन सकते हैं, न मन समझ सकता है। "यन्मनसा न मनुते येनाहुर् मनो मतम्" — वह ब्रह्म है जिसे मन नहीं जान सकता, किंतु जिससे मन को जानने की शक्ति मिलती है। ✨ निष्कर्...

वेदांत दर्शन में ब्रह्मता और आत्मा

 भारतीय दर्शन में वेदांत को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है, और इसका मूल उद्देश्य है — ब्रह्म और आत्मा की एकता का प्रतिपादन । वेदांत का मूल आधार यह है कि यह सम्पूर्ण जगत, आत्मा, और ब्रह्म में कोई द्वैत नहीं है, बल्कि सब एक ही परब्रह्म का प्रकट रूप है। अतः वेदांत के अनुसार, आत्मा का साक्षात्कार ही ब्रह्म का साक्षात्कार है। 🔶 वेदांत दर्शन: एक संक्षिप्त परिचय ‘वेद + अन्त’ = वेदांत वेदों के अंतिम भाग अर्थात् उपनिषदों को ही वेदांत कहा जाता है। ये उपनिषद न केवल वेदों का निष्कर्ष हैं, बल्कि अद्वैत ज्ञान का मूल स्त्रोत भी हैं। वेदांत दर्शन की प्रमुख शाखाएँ हैं: अद्वैत वेदांत — शंकराचार्य विशिष्टाद्वैत वेदांत — रामानुजाचार्य द्वैत वेदांत — मध्वाचार्य यहाँ हम मुख्य रूप से अद्वैत वेदांत की चर्चा करेंगे। 🌕 अद्वैत वेदांत का सिद्धांत 1. ब्रह्म एकमेव अद्वितीय ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है, जो नित्य, निर्विकार, निराकार और सर्वव्यापक है। यह ब्रह्म सत् (सत्य), चित् (ज्ञान) और आनंद (परमानंद) का स्वरूप है। "ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः" — यह अद्वैत ...

Nirankari Vichar BrahamGyan Kya Hai - ब्रह्मज्ञान क्या है?

  📜 परिचय: ब्रह्मज्ञान का अर्थ और महत्त्व "ब्रह्मविद्यायां सर्वविद्याः प्रतिष्ठिताः।" — उपनिषद् ब्रह्मज्ञान भारतीय दर्शन का ऐसा परम शिखर है, जहाँ पहुँचकर ज्ञानी को जीवन के समस्त रहस्यों का समाधान प्राप्त होता है। यह केवल एक दार्शनिक या धार्मिक धारणा नहीं, बल्कि आत्मा और ब्रह्म के अद्वैत (अभिन्नता) को अनुभूति के स्तर पर जानने की स्थिति है। उपनिषदों, भगवद गीता, वेदांत, और अनेक संतों की वाणी में यही ज्ञान सर्वोच्च बताया गया है, क्योंकि यही मोक्ष, मुक्ति, या निर्वाण की कुंजी है। 🌺 1. ब्रह्म क्या है? ‘ ब्रह्म ’ का अर्थ है: जो बड़ा है , जो अनंत है , जो अविनाशी है , जो सर्वत्र व्याप्त है, और जो सत्-चित्-आनंदस्वरूप है। ब्रह्म कोई मूर्त रूप या देवी-देवता नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि का मूल और शुद्ध चेतना का स्त्रोत है। "सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म" — तैत्तिरीय उपनिषद में ऐसा वर्णन है। अर्थात, ब्रह्म सत्य है, ज्ञानस्वरूप है, और अनंत है। 🔎 2. ब्रह्मज्ञान क्या है? ब्रह्मज्ञान वह दिव्य अनुभूति है, जिसमें साधक यह जान लेता है कि— "मैं यह शरी...